Monday, January 26, 2015

क्रांति बीज

वे
उसके चश्में के नहीं
आंखों के लैंस थे।
जो तुमने फोड़ दिये
इस घिनौनी साजिश के साथ
कि कहीं तुम्हारी दीं हुईं यातनाओं के अक्स
उसके बच्चों में न उतर जायें प्रतिशोध बन।

मगर
जाओ और जाकर देखो
कि सदियोँ से सुप्त पड़ा क्रांति बीज
उसके रक्त से सिंचित हो
एक रक्तिम गुलाब बन चुका है
तुम्हारे वजूद को धिक्कारता।

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Monday, January 19, 2015

कलम -कविता

ओ मेरे पिता !
तुम मेरे भीतर समोये हो , बोये हो , रोपे हुए हो अपने आपको कैसे ?
कि यों तो कवि बनकर विचरते हो समूचे संसार में
मगर फिर भी मेरे भीतर रहते हो एक कथाकार बनकर।

तुम्हीं ने मुझको कि अपने अपको न जाने कब चेताया
कथाओं में मनके-मनके अनेक अर्थों में घुमाया ,
बीज-बीज कथानक में गहरे ,नीचे जड़ तक गहरे मिट्टी में गोड़ कर दबाया।
सुरों-सुरों लहरियों हवा में फहराया पात्रों के भाव व अपने विचार बनकर।
रानी भी तुम्ही हुए और राजा भी ,
और राजकुमारी की चाह में लंबी दुरुह समुद्री व भीहड़ यात्राओं में भी तुम्ही
निकले एक वीर राजकुमार बनकर।

तुम्ही संतों संग दर-दर भटके
कहीं न ठिठके , कहीं न उकते।
और  मेरी कथाओं की  आत्मा  में अब भी तुम ही हो।

न जाने कब से
मेरे भीतर अडोल पड़ी
तुम्हारी कथाकार बनने  की तपस्यायैं
कब मुझ में प्रस्फुटित हुंई
और
कब नवतरू हुंई
यह मैंनें भी अब आ कर जाना
और अपने भीतर पड़े एक विशालात्मा कथाकार को
अनेक वर्षों बाद ही पहचाना।

अभी जो मेरे किस्से -कहानियों में समूचा बर्ह्मांड आ बसा है ,
उसके तजुर्बों में भी तो तुम्ही वय
तुम्ही मेरे भीतर बसे हो कस्तूरी महक बनकर
सदियों-सदियों फहर जाने के लिए ,
और मेरे किस्से-कहानियों में सदा-सदा बस जाने  के लिए।

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Sunday, January 11, 2015

लघु कविताएँ

कान्हा के कुण्डल में 
हंसी हिलती है। 
उपवन मे यों कली खिलती है। 
प्रकृति में द्युति मिलती है। 
जीवन में ऐसे 
गति मिलती है। 

                    २ 
बहुत ऊँचे 
देवदार के वृक्षों के 
झुरमुट के  नीचे  से भी 
आकाश व प्रकाश 
मुश्किल से ही दिखता है। 

तरीकों से नहीं 
परमात्मा का तो 
भक्त की भक्ति 
से ही रिश्ता है। 





Monday, January 5, 2015

लघु कविताएँ


कहो
कुछ कहो
किसी  के भी  कहते  ही
अपने भीतर  कोने कोने तक
मै हड़बड़ा जाता हूँ
क्योंकि मुझे तो
अड़ोल निर्लेप
यूं ही बहते जाना है
बह जाना है

Thursday, January 1, 2015

लघु कविताएँ

धूप
भी तो अभी
आकाश पर चमकता सूरज ही तो थी
हिस्सा  एक बड़े दमकते अभिमानित प्रकाश पुंज का

वहॉँ से छूटी
तो अब न जाने कंहा
जा कर पड़ी बेवजूद होकर।

लघु कविताएँ