१
दो नेत्रों में
ज्ञान है समाया
तीसरे मे ध्यान
दो को तो सब जग पहचाने
तीसरे को कोई विरला जाने
जो तीसरे नेत्र की ज्योत को जाने
वही शिव की सृष्टि भी जाने
२
धूप बिखरती
सपाट समतल मैदानों में
हवा चूमती
खलिहानो की हरियाली को
देख देख कर
किसान हँसता है
यहीं तो भगवान बसता है
००००